यूपी के 121 राजनीतिक दलों पर कार्रवाई की तलवार, 6 साल से चुनाव न लड़ने पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने की सख्त सुनवाई
(Report - Mohammad Sayeed Pathan)
लखनऊ/संतकबीरनगर । भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने उन राजनीतिक दलों की सुनवाई की जो पिछले 6 वर्षों से किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं ले रहे हैं।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय, लखनऊ में हुई इस सुनवाई में प्रदेश में पंजीकृत 121 राजनीतिक दलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। इनमें से 2 और 3 सितम्बर को हुई कार्यवाही में अब तक 55 दलों ने ही अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है।
51 दलों को बुलाया, 17 ही पहुंचे
3 सितम्बर को सुनवाई के लिए 51 दलों को बुलाया गया था, लेकिन सिर्फ 17 दल ही पहुंचे।
सुनवाई के दौरान दलों से अंशदान रिपोर्ट, ऑडिट रिपोर्ट और चुनावी खर्च का पूरा ब्यौरा मांगा गया। साथ ही दलों के ईमेल, मोबाइल नंबर और वर्तमान पते की पुष्टि की गई।
सीईओ का सख्त संदेश
मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने स्पष्ट कहा—
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हर दल को 30 सितम्बर तक अंशदान रिपोर्ट और 31 अक्टूबर तक वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट देनी होगी।
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लोकसभा चुनाव के बाद 90 दिन और विधानसभा चुनाव के बाद 75 दिन में आय-व्यय का विवरण अनिवार्य है।
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₹20,000 से अधिक के चंदे की जानकारी निर्वाचन आयोग को देनी होगी।
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सभी दलों को अपना ईमेल, मोबाइल नंबर और वर्तमान पता अपडेट रखना जरूरी है, ताकि आयोग समय पर संपर्क कर सके।
सुनवाई में मौजूद राजनीतिक दल
आज की सुनवाई में गदर पार्टी (प्रतापगढ़), नवचेतना पार्टी (मैनपुरी), नवीन समाजवादी दल (प्रयागराज), निस्वार्थ सेवा राष्ट्र सेवा पार्टी (प्रयागराज), पूर्वांचल क्रांति पार्टी (जौनपुर), राष्ट्रवादी इंसान पार्टी (प्रयागराज), राष्ट्रवादी समाज पार्टी (कानपुर नगर), राष्ट्रीय बंधुत्व पार्टी (प्रयागराज), आम जन क्रांति पार्टी (इटावा), राष्ट्रीय लोकतंत्र दल (हापुड़), राष्ट्रीय मानव विकास पार्टी (अमरोहा), सामूहिक एकता पार्टी (कानपुर नगर), सर्वप्रिय समाज पार्टी (इटावा), सत्य शिखर पार्टी (अयोध्या), यूथ सोशलिस्ट पार्टी (मुरादाबाद), युवा अनुभव पार्टी (गोरखपुर) और भारतीय युवा स्वाभिमान पार्टी (औरैया) के प्रतिनिधि शामिल रहे।
सवाल बरकरार
अब देखने वाली बात यह होगी कि—
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क्या चुनाव न लड़ने वाले इन दलों का पंजीकरण रद्द होगा?
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या फिर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के बाद इन्हें राहत मिलेगी?
जनता और राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज़ है कि ऐसे दल जो सालों से चुनाव मैदान में नहीं उतरते, क्या सिर्फ कागजों पर बने रहने चाहिए?
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