लापरवाही पर सख्त फैसला: जिला उपभोक्ता आयोग ने स्पर्श हॉस्पिटल और बीमा कंपनी को दिया तीन लाख मुआवज़ा देने का आदेश
(सईद पठान की रिपोर्ट)
संतकबीरनगर। चिकित्सा सेवाओं में लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए जिला उपभोक्ता आयोग संतकबीरनगर ने एक अहम फैसला सुनाया है। आयोग ने स्पर्श हॉस्पिटल डडवा, जनरल सर्जन डॉ. राकेश कुमार चौधरी तथा ओरिएंटल बीमा कंपनी को आदेशित किया है कि वे पीड़ित महिला उपभोक्ता को तीन लाख रुपए आर्थिक क्षतिपूर्ति के साथ-साथ एक जनवरी 2018 से अंतिम भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दें। इसके अतिरिक्त आयोग ने पीड़िता को शारीरिक और मानसिक पीड़ा के लिए एक लाख रुपए तथा मुकदमे का खर्च दस हजार रुपए अदा करने का आदेश भी दिया है।
मामला क्या है?
ग्राम राउतपार, पोस्ट चन्दहर (जनपद संतकबीरनगर) की संगीता पत्नी राकेश कुमार ने आयोग में परिवाद दाखिल कर बताया कि उन्हें पेट दर्द की समस्या थी। जांच के बाद स्पर्श हॉस्पिटल के डॉक्टर राकेश कुमार चौधरी ने गॉलब्लैडर का ऑपरेशन करने की सलाह दी। एक दिसंबर 2017 को भर्ती कर ऑपरेशन किया गया और 8 दिसंबर को डिस्चार्ज कर दिया गया। इस दौरान ऑपरेशन व दवा पर कुल ₹16,956 का खर्च हुआ।
लेकिन आरोप है कि ऑपरेशन लापरवाहीपूर्वक किया गया, जिससे ऑपरेशन स्थल पर गंभीर संक्रमण हो गया। 15 दिसंबर को कराए गए अल्ट्रासाउंड में भी संक्रमण की पुष्टि हुई। स्थिति बिगड़ने पर पीड़िता को गोरखपुर होते हुए 20 दिसंबर को मुंबई के बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा, जहाँ इलाज पर लगभग तीन लाख रुपए खर्च हुए।
आयोग तक पहुँचा मामला
पीड़िता ने 3 मई 2019 को विपक्षी पक्षों को नोटिस भेजा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। मजबूर होकर उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग ने पत्रावली, उपलब्ध साक्ष्यों और बहस के बाद माना कि लापरवाहीपूर्ण ऑपरेशन के कारण महिला की हालत गंभीर हुई और उसे मुंबई तक इलाज के लिए जाना पड़ा। यह न केवल आर्थिक बोझ बल्कि मानसिक और शारीरिक पीड़ा का भी कारण बना।
आयोग का आदेश
अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार सिंह और महिला सदस्य श्रीमती संतोष की पीठ ने यह मानते हुए कि सेवा में घोर कमी की गई है, आदेश दिया कि—
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पीड़िता को तीन लाख रुपए आर्थिक क्षतिपूर्ति दी जाए।
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इस रकम पर 1 जनवरी 2018 से अंतिम भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत ब्याज दिया जाए।
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शारीरिक, मानसिक पीड़ा के लिए 1 लाख रुपए और मुकदमे का खर्च 10 हजार रुपए अलग से अदा किए जाएं।
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संपूर्ण भुगतान आदेश की तिथि से 60 दिन के भीतर करना अनिवार्य होगा।
विश्लेषण
यह फैसला स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही और उपभोक्ताओं के अधिकारों की दिशा में एक मजबूत कदम है। चिकित्सा क्षेत्र में लापरवाही केवल मरीज के जीवन को खतरे में नहीं डालती, बल्कि पूरे समाज में स्वास्थ्य व्यवस्था पर अविश्वास भी पैदा करती है। उपभोक्ता आयोग ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि स्वास्थ्य संस्थानों और बीमा कंपनियों को अपनी जिम्मेदारियों से भागने की इजाज़त नहीं दी जाएगी।
इस फैसले ने न केवल पीड़िता को न्याय दिलाया बल्कि अन्य पीड़ितों को भी यह भरोसा दिलाया है कि यदि उनके साथ अन्याय होता है तो कानून उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए मौजूद है।
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