यूरोपियन पार्लियामेंट में पहुँचा नागरिकता संशोधन क़ानून,29 जनवरी को होगी सुनवाई,30 को होगा मतदान, 751 सांसदों में इतने सांसदों का मिला समर्थन


नई दिल्ली ।
यूरोपियन पार्ल्यामेंट में भारत के नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे यूके के सांसद का दिमाग है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीरी (पीओके) मूल का है। इस प्रस्ताव पर इसी हफ्ते बहस हो सकती है। पीओके में मीरपुर का निवासी शफ्फाक मोहम्मद 2019 से यूरोपियन पार्ल्यामेंट का सदस्य है। उसे शेफिल्ड सिटी काउंसिल के काउंसिलर के तौर पर 'राजनीतिक सेवा' के लिए 2015 में मेंबर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर का खिताब दिया गया था।



751 में से 154 सांसदों का समर्थन


यूरोपियन पार्ल्यामेंट में कुल 751 सांसद हैं। खबर है कि इनमें 154 सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन किया है। हालांकि, यूरोपियन पार्ल्यामेंट के प्रस्ताव यूरोपियन कमिशन के लिए बाध्याकारी नहीं होते हैं। प्रस्ताव के मसौदे पर 29 जनवरी को चर्चा हो सकती है और 30 जनवरी को इस पर मतदान हो सकता है। हालांकि, NBT के सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, इस प्रस्ताव को बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं होगा।




पाकिस्तान ने किया खेल
भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच अगला सम्मेलन जल्द ही ब्रसल्स में होने वाला है। भारत-पाकिस्तान मामलों एवं यूके की राजनीति के जानकार मोहम्मद के पीछे पाकिस्तान सरकार का हाथ होने से भी इनकार नहीं कर रहे हैं। यूरोपीय संसद के 154 सांसदों ने प्रस्ताव में कहा है कि सीएए के कारण दुनिया में नागरिकता का सबसे बड़ा संकट पैदा हो जाएगा और बड़े पैमाने पर लोगों को इसका दंश झेलना पड़ेगा।



भारत का ऐतराज
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि ईयू संसद को ऐसे कदम नहीं उठाने चाहिए जो लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सांसदों के अधिकारों एवं प्रभुत्व पर सवाल खड़े करे। उन्होंने कहा कि सीएए भारत का पूर्णतया अंदरूनी मामला है और कानून संसद के दोनों सदनों में बहस के बाद लोकतांत्रिक माध्यम से पारित किया गया था। एक सूत्र ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि प्रस्ताव पेश करने वाले एवं उसके समर्थक आगे बढ़ने से पहले तथ्यों के पूर्ण एवं सटीक आकलन के लिए हमसे वार्ता करेंगे।'



सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है।


दीपांजन रॉय चौधरी


Source NBT


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